इसे 13वीं सदी में गंगा वंश के राजा नरसिंहदेव प्रथम ने बनवाया था. इसकी कलाकृतियां हैरत में डाल देती हैं. यह कलिंग वास्तुकला के सबसे बेहतरीन नमूनों में से एक है. कहा जाता है कि सूर्य मंदिर को इस तरह से बनाया गया था कि सूरज की पहली किरणें सीधे पूजा करने की जगह और भगवान की मूर्ति पर पड़ें .
सूर्य कोणार्क मंदिर किसने बनवाया था?
कोणार्क सूर्य मंदिर का निर्माण 13वीं शताब्दी में पूर्वी गंगा राजवंश के शासक नरसिम्हादेव प्रथम द्वारा उड़ीसा में किया गया था। इस मंदिर के पीछे मुख्य वास्तुकार बिसु महाराणा हैं। यह मंदिर एक विशाल रथ के रूप में है।
कोणार्क का निर्माण कैसे हुआ?
इस मंदिर का निर्माण 13वीं शताब्दी में उड़ीसा के राजा नरसिंहदेव ने करवाया था। कहा जाता है कि भगवान कृष्ण के बारह वर्षों से लकवाग्रस्त पुत्र संबा को सूर्य देव ने ठीक किया था। इस कारण उन्होंने सूर्य देव को समर्पित इस मंदिर का निर्माण किया था।
कोणार्क मंदिर का निर्माण कब हुआ?
कोणार्क सूर्य मंदिर पूर्वी ओडिशा के पवित्र शहर पुरी के पास स्थित है। इसका निर्माण राजा नरसिंहदेव प्रथम द्वारा 13वीं शताब्दी ((1238 – 1264 ई) में किया गया था।
कोणार्क का सूर्य मंदिर क्यों है?
धार्मिक मान्यता है कि भगवान सूर्य की उपासना करने से सभी रोगों से मुक्ति मिलती है। अतः साम्ब ने भी सूर्यदेव की कठिन भक्ति कर उन्हें प्रसन्न किया। उस समय भगवान सूर्यदेव ने प्रसन्न होकर साम्ब को ठीक कर दिया था। तदोउपरांत, साम्ब ने कोणार्क में सूर्यदेव का मंदिर निर्माण करने का तय किया।
कोणार्क मंदिर का दूसरा नाम क्या है?
प्रसिद्ध कोणार्क सूर्य मंदिर ओडिशा के कोणार्क शहर में स्थित है। यह भारत के बहुत प्रसिद्ध सूर्य मंदिरों में से एक है। काले ग्रेनाइट से निर्मित होने के कारण इसे ‘काला पैगोडा’ भी कहा जाता है।
कोणार्क मंदिर की खासियत क्या है?
इस मंदिर की विशेषता है कि यहां बिना किसी घड़ी के भी दिन के समय को इंगित किया जा सकता है. कलिंग वास्तूशैली में बना कोणार्क सूर्य मंदिर को रथ आकार में बनाया गया है जिसमें 12 जोड़ी पहिए हैं, जो एक साल के 12 महीनों का प्रतीक हैं. और इस रथ को सात घोड़े खींच रहे हैं. ये सात घोड़े सात दिनों को दर्शाते हैं|
कोणार्क मंदिर में लोग पूजा क्यों नहीं करते?
कोर्णाक शहर में स्थित सूर्य मंदिर में पूजा नहीं होती है। ऐसा कहा जाता है कि मंदिर के प्रमुख वास्तुकार के बेटे ने इस मंदिर के अंदर आत्महत्या कर ली थी। इसी घटना के बाद से ही इस मंदिर में हर प्रकार के धार्मिक अनुष्ठानों पर प्रतिबंध लगा दिया गया। यही वजह है आज तक इस मंदिर में पूजा अर्चना नहीं की गई।
सूर्य मंदिर किस पत्थर से बना है?
खोंडालाइट नामक पत्थर का उपयोग बड़े पैमाने पर मंदिर निर्माण के लिए किया गया था, जबकि उच्च गुणवत्ता वाले क्लोराइट का उपयोग द्वारजाम्ब और कुछ मूर्तियों के लिए किया गया था। मंदिर के आंतरिक भाग और अन्य संरचनाओं का निर्माण बड़े पैमाने पर लेटराइट पत्थरों का उपयोग करके किया गया था।
कोणार्क सूर्य मंदिर किस सामग्री से बना है?
सूर्य मंदिर का निर्माण तीन प्रकार के पत्थरों से किया गया था। क्लोराइट का उपयोग दरवाजे के लिंटेल और फ्रेम के साथ-साथ कुछ मूर्तियों के लिए भी किया गया था। मंच के मुख्य भाग और नींव के पास सीढ़ियों के लिए लेटराइट का उपयोग किया गया था। खोंडालाइट का उपयोग मंदिर के अन्य हिस्सों के लिए किया गया था।
इतिहास
यह कई इतिहासकारों का कोणार्क मंदिर के निर्माणकर्ता, राजा लांगूल नृसिंहदेव की अकाल मृत्यु के कारण, मंदिर का निर्माण कार्य खटाई में पड़ गया। इसके परिणामस्वरूप, अधूरा ढांचा ध्वस्त हो गया। लेकिन इस मत को एतिहासिक आंकड़ों का समर्थन नहीं मिलता है। पुरी के मदल पंजी के आंकड़ों के अनुसार और कुछ1278 ई. के ताम्रपत्रों से पता चला, कि राजा लांगूल नृसिंहदेव ने 1278 तक शासन किया। कई इतिहासकार, इस मत के भी हैं, कि कोणार्क मंदिर का निर्माण 1253 से 1260 ई. के बीच हुआ था।
निर्माण(Construction)
वर्तमान मंदिर का श्रेय पूर्वी गंगा राजवंश के नरसिम्हादेव प्रथम को दिया जाता है। 1238-1264 ई.- . यह उन कुछ हिंदू मंदिरों में से एक है, जिनकी योजना और निर्माण अभिलेख संस्कृत में उड़िया लिपि में लिखे गए हैं, जिन्हें ताड़ के पत्ते की पांडुलिपियों के रूप में संरक्षित किया गया है, जिन्हें 1960 के दशक में एक गांव में खोजा गया था और बाद में उनका अनुवाद किया गया था।मंदिर को राजा द्वारा प्रायोजित किया गया था, और इसके निर्माण की देखरेख शिव सामंतराय महापात्र ने की थी। इसे एक पुराने सूर्य मंदिर के पास बनाया गया था। पुराने मंदिर के गर्भगृह में स्थित मूर्तिकला को फिर से प्रतिष्ठित किया गया और नए बड़े मंदिर में शामिल किया गया। मंदिर स्थल के विकास का यह कालक्रम उस युग के कई ताम्रपत्र शिलालेखों द्वारा समर्थित है जिसमें कोणार्क मंदिर को “महान कुटीर” कहा गया है।
जेम्स हार्ले के अनुसार, 13वीं सदी में बने इस मंदिर में दो मुख्य संरचनाएं थीं, नृत्य मंडप और महान मंदिर (देउल)। छोटा मंडप वह संरचना है जो बची हुई है; ग्रेट देउल 16वीं शताब्दी के अंत में या उसके बाद किसी समय ढह गया। हार्ले के अनुसार, मूल मंदिर “मूल रूप से लगभग 225 फीट (69 मीटर) की ऊंचाई पर रहा होगा”, लेकिन इसकी दीवारों और सजावटी मोल्डिंग के केवल कुछ हिस्से ही बचे हैं।
स्थापत्य
कोणार्क शब्द, ‘कोण’ और ‘अर्क’ शब्दों के मेल से बना है। अर्क का अर्थ होता है सूर्य, जबकि कोण से अभिप्राय कोने या किनारे से रहा होगा। प्रस्तुत कोणार्क सूर्य-मन्दिर का निर्माण लाल रंग के बलुआ पत्थरों तथा काले ग्रेनाइट के पत्थरों से हुआ है। इसे 1236–1264 ईसा पूर्व गंग वंश के तत्कालीन सामंत राजा नृसिंहदेव द्वारा बनवाया गया था। यह मन्दिर, भारत के सबसे प्रसिद्ध स्थलों में से एक है। इसे युनेस्को द्वारा सन् 1984 में विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है| कलिंग शैली में निर्मित इस मन्दिर में सूर्य देव(अर्क) को रथ के रूप में विराजमान किया गया है तथा पत्थरों को उत्कृष्ट नक्काशी के साथ उकेरा गया है। सम्पूर्ण मन्दिर स्थल को बारह जोड़ी चक्रों के साथ सात घोड़ों से खींचते हुये निर्मित किया गया है, जिसमें सूर्य देव को विराजमान दिखाया गया है। परन्तु वर्तमान में सातों में से एक ही घोड़ा बचा हुआ है। जो अर दिन के आठ पहरों को दर्शाते हैं। यहाॅं पर स्थानीय लोग प्रस्तुत सूर्य-भगवान को बिरंचि-नारायण कहते थे।